नवजागरण का यह मंगलप्रात
प्रात किरणों का धरा पर शुभागमन
रात की निस्तब्धता को दूर करे
खगकलरव ने दे दी मधुर तान
मंदिर में बजता घंट निनाद
सरल सुषमित भोर में
नवजागरण का यह मंगलप्रात
सो चुके बहुत अब मंजिल
को अपनी बढ़ना है ,
रैन बसेरे की छाँह छोड़कर
धूप में अपना पग रखना है ।
सतत निश्छल अविराम , मालिन्य से बचकर
सत्य की अग्नि में तपकर कुंदन से बन निखरना है ।
भेदों की संकीर्णभूमि से निकलकर
समानता का सूर्य उदित होता है
रुढ़िबंध की जंजीरों को तोड़
एक ही लोहित लहू सबमें बहता है ।
क्षुद्रत्ता को छोड़ , आप ही सँभलना है ।
हे मित्रों ! हर अंधियारे में उजियारा तुमको करना है
सूर्य सा प्रकाशवान बनना है
गति अवरुध्द होने न पाए ,
मन में यह प्रबल विश्वास जगाये रखना है ,
अपने छोटे - छोटे इन प्रयासों से ही
एक नए युग को गढ़ना है ।
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