साथ अनंतर है

बंधनों   में   रहकर   भी   बंधनों   से   आगे    निकल

जन्म  -   जन्मांतर   से    परे    केवल   एक   आशा

मृत्यु   का    फिर    भय    क्या   ?     जब    यह    साथ   

है     चिर     शाश्वत     सत्य     ,    क्यों    सुबके    डर  से

क्या     बदलते    मौसम    को    बदलते    देख    रोते   हो

अरुचिकर   यह    सत्य    कड़वा    और    तुम   इससे    भागते  हो

किस  घर   में   मिलेगा  तुम्हें   वह   तिनका   जहाँ   ना   बरसो  हो

मृत्यु    का    बादल    घनेरा   ?    ध्यान    धरो    और    जानो

हर    क्षण     के     दो    पहलू     इन्हें    पहचानों  

अंतर     में      ही      है     उत्तर     छिपे  ,

तुम्हारे    मा  !    विषाद      में      सजल    नेत्रों    में

सबकुछ      शुध्द     मोती     सा     स्पष्ट     है  

इसे     कहने      की     जरुरत    नहीं  ,   साथ   अनंतर   है ।

इसे   भी   पढ़े  -

●  मरा मरा करके


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