बबूल का फूल

बबूल     जो    मेरी    छत    के

किनारे    सटकर    छतरी   सा   गुल्म

लगाये   आ    खड़ा   है ।

उसकी   डाली   में    वासंती   मौसम 

ने   दी    है    आहट    उसकी   कली 

कच्चे    धनियों    के    बीजों   की

आपस    में    जुड़ी    लंबी    कतार

उसके    फूल    शहतूत    फल   से 

कुछ    कुछ    लम्बे     दिखते   अपार

झुरमुट    मंजरी    में    पराग   भरा   

नन्हीं    पंखुड़ियाँ     उसमें      झाँके 

हमको    चुपचाप  

हवाओं    संग    दूर    तलक ...  बहती  जाए 

अपना    पराग   पंखुड़ी    वो     

नीचे    जमीन   पर    गिराए  ...!

फूल    लगे    है    सुंदर   पर

काँटों    से    भरा   है  ,

फिर    भी    चिड़िया   करती   है 

उनमें    अपना    बसेरा  

ये   जगत    और    जीवन   भी    कुछ 

ऐसा    ही   है    जहाँ    फूल   और   काँटे 

आपस   में    अलग    नहीं    एक   है

जिसमें    जीव   राजी  -   खुशी    

हर    इक    पल    को    जीता   है ।

हर    मुश्किल    को   मिलकर    सहता   है  ।

●  लिख देता ये कथा कौन


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