वृंदावन तट रेनू ... मन से जो पास हो
वृंदावन तट रेनू ... मन से जो पास हो । वहाँ बन्धन तुच्छ हो जाते है । सीमाएँ भी तभी तक रहती है जब तक हृदय कुलष से छूटकर प्रेमभाव की वृहत्तर भूमि प्राप्त नहीं कर लेता है और त्याग व करुणा की मृदुल हितभूमि से जब उसका संबंध
स्थापित हो जाता है तब वह और भी प्रगाढ़ हो जाता है अपनी कटु प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर ही जीवन का वास्तविक रसानंद प्राप्त हो सकता है । यह हृदय की सच्ची अनुभूति है । यहाँ पर आसाधरणत्व का कोई स्थान नहीं मन से जो पास हो वहाँ फिर दूर नहीं ।
सच में, जब हृदय अपने छोटे-छोटे बंधनों और कटु प्रवृत्तियों से ऊपर उठता है, तब ही असली रसानंद मिलता है। मुझे अच्छा लगा कि तुमने प्रेम, त्याग और करुणा को जीवन की आधारभूमि बताया। ये तीनों ही मिलकर मन को साफ और विशाल बना देते हैं।
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