चलो देख आए

हवाओं   से   दूर   नीलगगन   के  साथ 

समंदर   का   तरंगायित   दर्पण

हरियाली   का   तृण -  तृण

लहराता  धरा   के   आंगन  में

उत्सव   के  साथ  सावन  की  सौगात 

बारिश   में   झूमता -  गाता   बालदल

कागज   की    कश्ती    बनाता    और

बारिश    में    नहाता    बालदल    

भीगता    हुआ    मौसम

कड़ी   धूप    के    बाद 

शीतल   जल   की   फुहार

एक   गहरी   श्वास  -  निःश्वास 

मंद  -  मंद    मुस्कान    लौटता   

मनप्राण   जीवनाधार   खोए   हुए   

स्मृति   चिन्ह  बचपन   का   सबरस   

खुले  आंगन  में  क्रीडा  करता  बालदल  देख  आए

यूँही   बंद  फाटक   में  न   रह   जाए  ... कि  चलो  देख  आए ।


टिप्पणियाँ

  1. सावन और इस मौसम को बाखूबी लिखा ...

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  2. सावन का बादल और कागज की नाव चलाता रिमझिम बारिश में अठखेलियाँ करता बालदल का बहुत ही खूबसूरत शब्दचित्रण ...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. सावन में होने वाली बाल सुलभ क्रीड़ाओं का मनोहारी अंकन । बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. भाईसाब क्या कमाल की तस्वीर खींच दी आपने शब्दों से। पढ़ते-पढ़ते सच में बारिश की खुशबू आ गई और वो भीगा-भीगा बचपन सामने तैरने लगा। आपने जो याद दिलाया न, वो सिर्फ मौसम नहीं था—वो वो दिन थे जब हम सच में जिए थे, हँसे थे, भीगे थे।

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