हम सब एक परिवार है
जरुरी नहीं की हर गीत लिखा जाए
कुछ गीत बस यूँही गुनगुना लिया जाए
खुली हवा में खुले जीवन के साथ
हर बाधा से मुक्त अविमुक्त
स्वतंत्र खग की उड़ान
अनन्त व्योम में विचरते बादलों की भाँति
बिना व्यक्त किए व्यक्त कर देने की बात
हवाओं की शीतल छाँह में घुलते शब्द
संग अंतर्मन भाव शुध्द
हर आडम्बर से दूर
बंद परदों की काली ओटों से निकलकर
निर्भय जीवन संगीत आलाप
हिय से झंकृत मन सितार
विस्तृत सूक्ष्म नृत्य झंकारें
बंद कलमष संकीर्णता को त्यागे
बिखेरे चहुँओर सुर - संजीवनी
जीवन के हर रुप से प्यार हो
संबल विश्वास का दूर करे
द्वेष - घृणा की विषम अग्नि
आपस में भाईचारा अपार हो
हमारी प्रार्थना हो बस यही
हम सब एक परिवार है
हम सब अपनी - अपनी
जगह पर रहकर
हरेक को संपूर्णता से बांधती इस
विश्व भावना वसुधैव कुटुम्बकम् को
हरेक अंतर में दिये की लौ बन जगाए
मुझे सबसे अच्छा वो भाव लगा जहाँ बिना दिखावे के जीवन को संगीत की तरह जीने की बात कही गई है। सच तो ये है कि अगर हम सब एक परिवार की तरह सोचें तो नफरत और दूरी अपने आप मिट जाए। “वसुधैव कुटुम्बकम्” वाली भावना को शब्दों में पिरोना बहुत असरदार है। ये पंक्तियाँ याद दिलाती हैं कि सादगी, भाईचारा और भरोसा ही असली जीवन संगीत है।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंजरुरी नहीं की हर गीत लिखा जाए...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव लिए प्यारी रचना