इबादत जो देखी है
अपलक नयन तीरे एक
अकूल तट विमल
सपतरंग सप्तपर्ण प्रतिबिंब
खिलते शतदल कमल
फैला हुआ विस्तृत क्षितिज
ठन गई है बात खुदा से
आँखों में एक अचरज सा
स्वप्न पलता है , तृण से कोमल
धागे की क्रोशिया सिली है
चूल्हे की रोटी में अपनेपन की
मिठास घोली है , पूरे दिन घर
मंदिर की साजो - साज में
एक गहरी मुस्कान भरी
इबादत जो देखी है ..!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 23 नवंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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