दो मिनट
वृक्षों पौधों पर पतझड़
वसंत के साथ छोटे
सुरखलाल रक्तरुप नन्हें
कपोले खिल आए है ,
टहनी अभी खाली खाली है
पर अभी भी कुछ पत्ते सूखे
उड़ने के इंतजार में
कतारबद्ध अपनों के साथ
बेफिक्र झूल रहे है ,
और उस वृक्ष पर जो
किहीं दूर से उड़कर आया
पखेरु बैठा अपनी थकान मिटा रहा है
नजर उठाकर देखने पर उस
मिश्रित पत्र - युग्मों में छिपा - छिपा
सा दिख जाता है ,
कुछ देर विश्रामोपरांत वह
उड़ जाता है ,
फूलों पौधों की क्यारियों के
भी कुछ यहीं हाल है ,
अभी गर्मियाँ आनी है
कुछ ही समयोपरांत ये
मौसम बीत जायेगा
तब कहाँ जाओगे
फिर एक लम्बी प्रतीक्षा दोहरोगे
दुनिया की आपाथापी में
इस कदर भी ना खोये
कि इन वृक्षों - पौधों
ये पतझड़ ये बहार
ये सुंदर प्रकृति
से मिलने को हम
दो मिनट भी ना निकाल पाए
भले ही सोशल मीडिया की दुनिया
में हम अपने घण्टों बीत आए ।
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