अभी बाकी है - एक आस एक विश्वास
अन्तश्चेतना का दीप जला है
मनमानव ईश्वरत्व के आह्वान
में विश्वास का दृढ़ आधार छिपा है
लगा रही है खुली घाटी में एक
मौन विनम्र पुकार , साहस धैर्य बिंदु
प्रकृति माता ने सिखलाया ;
वह खड़ा है दिशाविहीन नहीं जो
पथविहीन नहीं हाँ , मगर
अभी उसका जागना बाकी है
सोई चेतना का जागरण बाकी है काली
भयंकर रातों में दीप का जलना शेष है
शेष है अभी जीवन शेष है अभी
जीवन का महत्तर , लघुपाद चलती
तिलतिल इन मेहनतकश चींटियों को
गौर से देखना , उनसे वो ज्ञान लेना
बाकी है , जो सतत अविरत निश्छल
निस्वार्थ भाव से कर्म में आस्था जागता है
कितने क्षितिजों पर उदित होता
सौंदर्य भावों विचारों को गति देता ,
अभी बाकी है जीवनशेष का निदर्शन
परम भावों को देता जो प्रकाश
जहाँ से जन्म मरण का बंधन
मिट जाता जहाँ सुखदुख समविषम
अनेकानेक प्रतिद्वंद्व खो चुप हो जाता
उस चेतना का परम साक्षात्कार इस
दीपक लौ बाती में एक होना अभी बाकी है
एकटक टकटकी में इस बाँधना
अंधेरे कुँए में दीप जलाना
शून्यता की अग्नि में खो प्रदीप्त हो जाना
अभी बाकी है ... एक आस एक विश्वास ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शुक्रवार 16 मई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधरती का कण-कण सजग है,
जवाब देंहटाएंबिंदु मात्र आशा विश्वास भी
करता है आत्मसात..
बहुत खूबसूरत रचना
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