हे सूर्य !
प्रात किरणों ने किया सवेरा
उषा भर लायी सुबहा की लाली
भोर भई पनघट पर
गंगा जमुना सरयू गोदावरी
कृष्णा कावेरी शिप्रा नर्मदा
सरस्वती ब्रह्मपुत्र सिंधु अगणित
मनघाटों पर करते नमस्कार
सूर्य तुम देना हर बुराई के अंधेरे में
प्रकाश की उज्ज्वल आस
कर्म के प्रति निष्ठा श्रध्दा लगन
लगाना कर्म ही श्रेष्ठ जग में
गीता का यह अमर संदेश
तेजेन्द्र दिनभर अविचल सुनाना
अंशुमाली ऊर्जा का दीप जलाकर
प्रमाद आलस्य भोग विलास व्यर्थ
को बंदी बनाकर उन्नति का पथ दिखलाना
इस सृष्टि को हे भास्कर ! आलोक
से दीप्त मंगलमय भालतिलक बन
रोज सजाना ।
ॐ सूर्याय नम:
जवाब देंहटाएंसर्वोत्तम प्रार्थना
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