सेवाभाव पथ लक्ष्य यहीं

वक्त के साथ बदलता अदब

हर साँचे में ढलना 

कदम से कदम मिलाकर चलना

भीड़ की मक्खी बन जाना आसान है ,

पर खुद को खुद में रहकर तराशना थोड़ा  

मुश्किल है ,

अपनी गलतियों को समझना और सुधारना 

सुधार की अपेक्षा तो हम सदैव दूसरों से ही रखते है

पहले सच से सामना होता है

दो - चार बातें 

अपने को आईना मानकर कहे सके गर 

ईमानदारी के साथ तो हो मुकम्मल 

चलो पत्थरीली चट्टानों पर या पुष्पित मृदुल शिरीष समराहों पर 

पथ पर जाते - जाते क्या और के लिए 

सोचा कभी समर्पण सेवा का ,

यूँही चलना तो निरर्थक है 

गति में प्रगति की भी सूझ हो 

सोचो समझो समस्या है यदि कही

समाधान भी छिपा है गह्वर में वहीं कही न कही

उलझी गाँठों को तोड़ोना धीरज धरो

मन के पक्के रिश्ते अनमोल 

मत आँकों धन - पूँजी से इनका मोल

मन से मन का नाता जोड़ो जो - जो मिला 

तुम्हे उपहार प्रेरणा सीख सदैव यहीं 

सेवाभाव पथ लक्ष्य यहीं …।


टिप्पणियाँ

  1. बहुत खूब ... खुद को तराशना होता है पर ...

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  2. भीड़ की मक्खी बन जाना आसान है ,
    पर खुद को खुद में रहकर तराशना थोड़ा
    मुश्किल है ,
    सार्थक सोच.., चिंतन परक सृजन । बहुत सुंदर सृजन प्रिया जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. भीड़ में घुल जाना आसान है, पर खुद को गढ़ना और ईमानदारी से आईना देखना बहुत मुश्किल है, ये बात दिल को छू गई। मुझे अच्छा लगा कि आपने रिश्तों और सेवाभाव को धन-दौलत से ऊपर रखा। आजकल लोग बस तेज़ी से भाग रहे हैं, पर तुम याद दिलाते हो कि गति में भी प्रगति तभी है जब उद्देश्य साफ हो।

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