चलते चलो
देख आसमान को और उठ खड़ा हो
चलते चलो उसके साथ
मुश्किलों में भी जीना सीखो
बनते - मिटते नित ये बादल
जीवन की सच्चाई है
आज है तो कल नहीं
वही याद रहे जो
सूखे दिन में आ करुण बरस गए
सूखी तलहटी में जीवन को भर गए
फूल खिले फसलें लहरायी
कई उदास चेहरे साथ खिल उठेजो अब काया में न था
मन की मुस्कुराहट में चुपचाप आकर बस गया
मंद - मंद जो अब मुस्काता था
बन सलिल शीतल
कानों में मधुर रव कहता जाता था
सुख - दुख क्रमशः आता - जाता
प्रतिकूलता से हार तुम न कभी कमजोर बनो
चलते चलो , चलते चलो ..!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 25 अगस्त 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसच है चलना ही जिंदगी का नाम है
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