अकेले ये दोनों पीढ़ियाँ
दो पीढ़ियों का अन्तराल है ये
विडम्बना की आवाज देता
एक तरह से अन्तर्मन को चीरता
असह्य पीड़ादायक दर्द है ,
ये दो पीढ़ियाँ विवश है
रह रहकर यह दंश सीने पे झेलती है
इन्होंने शायद खुद सीमा तय कर ली है
ये दोनों पीढ़ियाँ एक दूसरे से
दो हाथ फासले पर खड़ी है
निकट आकर एक - दूसरे से
बात तो करना चाहती है पर
ये कहीं उनके दिवास्वप्नों में घटित होता है
उनकी आकांक्षों अपेक्षाओं में
एक दूसरे को ना समझ पाने का
आरोप - प्रत्यारोप और अंत एक
तीखा स्वर झल्लाता सा द्वंद्व के
कितने रुप है इस जहाँ में
बाहर तो है ही , पर भीतर भी
एक द्वंद्व छिपा है निर्मम
जिसके कुठाराघात हृदयतल पर
हथौड़े से चोट करते है
ये दोनों पीढ़ियाँ हाथ में
एक रस्सी लिए है , ये
चाहती तो है कि इस रस्सी
को पकड़कर वे एक बार जुड़ जाए
जितने पूर्वाग्रह जितने गिले शिकवे
शिकायतें है , सब दूर हो जाए
एक बार खुद को एक - दूसरे के
स्थान पर रखकर देख ले
कितनी ठेस पहुँची है , जब से
ये बेरुखी को अपनाया है
खुलकर दो पल बात भी नहीं हो पायी
और जब कभी बात का मौका मिला
तो धीरे से फिर वही तकरार छिड़ गई
जैसा की अभी दोनों हाथ में
रस्सी लिए जोर रस्साकस्सी कर रहे है
दोनों मजबूर , उन्हें ही जीतना है
पर दोनों ही असल में हार रहे है
और कहीं छुपके सोच भी रहे है
पर अकेले ये दोनों पीढ़ियाँ ।
कटु सत्य।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।