वाणी तू गाए ... मन गीत फिर गुनगुनाए
वाणी तू गई टूट शब्द गए हमसे रुठ
अर्थ - भाव बिसर गए ज्यों किहीं दूर
खोते से अपने नेत्र सजल चुप है
उनमें एक मूक गहरी वेदना छिपी
सुबक रही अंतर्मन की विवर्ण दशा
मन हारे ना शब्द - शक्ति यही वर दे
हारे जग को भावों का विस्तृत स्वरुप दे
शून्य चेतना का अंतर - बोध और प्रीत गहरी
कालिमा का अंत , आलोक का सवेरा सुनहला
युग - युगांतर सब एक पथ में कहे जाए
भूले सुप्त जीवन को मार्ग दृढ़ता का दिखलाए
पथदर्शिनी , व्याकुलता के क्षुब्ध सागर में
निशा का चंद्र और दिवा का अविलोकितेश्वर एक साथ
उदासीनता के आँचल में शोभा पाता एक सुंदर संज्ञान
मिल निर्बंध स्वतंत्र शाश्वत रुप एक हो जाए
आत्महिये को पुकारे ... शांत चुप अबोल को विनत
बुलाए .... रहे ना अब कोई अबोला , वाणी तू निश्छल
अविराम सतत अपना गान गाए , वाणी तू गाए ... मन
गीत फिर गुनगुनाए ..!
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