विश्व में अटल सत्य के चिरवास का .!
ओ ! इतिहास की घड़ियाँ
चुप खड़ा निस्तब्ध
क्या तूने पहने ली बेड़ियाँ
अचंभा में पड़ा
शून्य को तकता
निर्जन में अकेला
जर्जर वृध्द ?
परिवर्तन की आंधियाँ
बदल देती है कितना कुछ
उड़ा ले जाती है अपने साथ सारे झूठे - विभवसबकुछ बरबस अंधेड में था
जो गया वो भी अंधेड में जा विलुप्त हुआ ,
पर नहीं मरती वह
चेतना अखण्ड सौभाग्यवती
लिखती है वह तिनके से
फिर एक नई कथा
भाव पुष्प चुन द्वार अल्पना सजाती
विश्वमंदिर प्रांगण में दीप जलाती
मृत मरघट सम अनजान रिक्त विवर
दीये का जलना जलकर प्रकाश करना
साक्षी वह उस अप्रतिम अपलक टिके विश्वास का
पल - पल बदलते विश्व में अटल सत्य के चिरवास का .!
सुन्दर
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
चेतना अनंत है और अनंत काल तक रचाती रहेगी सृष्टि चक्र
जवाब देंहटाएंसुंदर
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