तुम भूल न जाना जीवन को

सूने आकाश  में  एक अकेली पतंग  

जीवन  को भूल  न  जाना 

निर्जन पथ अकेला  ,  नही  स्नेहबंधन

डोर  न  ममता  की  कोर , अत्यन्त  यह 

निराशा   विरक्ति   भाव   कर्त्तव्य  कर्म  से  

अनमोल   स्वप्न   सा    सौभाग्य   स्वरुप

सुख  -   दुख   का   संगम   ये   संसार

बीता   वक्त   न    फिर   पीछे   लौटे   का

अलकों  के  कोनों   में  बनेंगे   

व्यथा - प्रेम  के   फिर   

रिलमिल  -  झिलमिल   मोती ।

कहती  हवा  बन  , ना  तू  अनजान

सत्य  है  जीवन - मृत्यु  की  कथा ।

फिर  क्यों  

विचलित भ्रमित  बनता  अनजान ।  

चलते  रहना  मेरे  मुसाफिर 

रुकना  तो   भी   मुस्कान   से 

खिलता  हो  तेरा  सत् संकल्प  तेरे   

पदचिन्ह   देते  रहे  जग  को   नित  

बढ़ते  रहने  का  स्पंदन  

अवशेष    की     व्यथा    नहीं  

मिट   जाने   की    ये   कथा   नहीं ।

सूने  आकाश  में   उड़ती   एक   

अकेली  पतंग 

तुम   भूल   न   जाना   जीवन   को ......! 

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