अन्तर्मन की लौ
मैं दीप बन जलूँगी
पथ प्रकाश बन हर तम में लौ भरुँगी ।
झंझा हो तूफां आँधी बिजली पानी हो या
बरसात , भाव न मिटे मन का
श्वास माला का फेर बदल जाए
रुप बदले पर स्वरुप वहीं रह जाए ।
इस भाव को अजर-अमर बना दो ,
इस भाव को न मिटने देना ।
इसे अन्तर्मन की लौ बना यूँही जलने देना।
मैं अंधकार में उजियारा करुँगी
राहों में मशाल बन तम में डूबे पथ का
निर्माण करुँगी ।
मैं रुकूँ , भाव न रुके , इस भाव को
न मिटने देना , इसे अन्तर्मन की लौ बना
यूँही जलने देना ।
इस भाव को अजर-अमर बना दो ।
चैतन्यता का दीप इसे हृदयतल में
विराजित मेरे विश्वव्यापी ईश्वर से मिला दो।
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