एक मिट्टी एक स्वर
रुँधी आवाज बंद थी कई दिनों से
एक लंबे अर्से को पार करती
वक्त के काँटें को चुनौती देती
एक सूखे , रोके कंठ और दरकते हिये की कहानी
अकेले मेले को तूफां से खींच शोरगुल कर देना का
विप्लव के मायने दूसरे , जीवन को फिर एक बार जीने को
सहजता , सौहार्द , विनत समरसता और उम्मीद के सवेरे
की नई रोशनी को धरती पर लाने को
कोहरे की ओस बूँद में फूलों को ,
गायब होते धुँधलकों को देखने
शरशैय्या पर चुप ना निशब्द सोये रहो
शेष व्यर्थ नहीं होने पाये , स्पंदन चिर एक सदैव
प्रतिध्वनित सुनने को व्यक्त - अव्यक्त एक टेर में
पृथ्वी का कण-कण हर क्षण यह अनमोल कहे जाए
उदासियों तले घने अंधेरे कालिमा में ही सहसा बिजली
चमके परिवर्तन विचारों का मंथन मानवता की
विराट उद्भावना निश्शेष में ही लिए आस सृष्टि का
हुआ था नवनिर्माण
अंतर्मन अब चुप ना बैठे मौन भी विस्तृत हो बोले
सुभाव - विचार और निर्मल प्रेम की अजस्त्र बानी
टूटे मन को ममता का बल दे , प्यासी पथराई आँखों
को गंगा का विशुध्द जल दे
बहती जीवनधारा को संघर्ष चट्टानों से संघृष्ट सुंदर बना
उर में एक विस्तृत मंदिर का निर्माण
ऊँच - नीच , जात - पात का भेदभाव नहीं
मन - मालिन्य का जहाँ सवाल नहीं ।
क्या पाया ? से कई ज्यादा क्या दिया जग को ?
भान जहाँ ! एक मिट्टी , एक स्वर बाधाओं से
लड़कर साम का सुमंगल स्वरगान सुंदर मिलकर !
दोस्त, ये कविता पढ़कर सच में लगा जैसे दर्द और उम्मीद का पूरा सफर सामने खुल गया हो। तुम्हारे शब्दों में जो रुँधापन, संघर्ष और फिर बदलाव की चमक है, वो दिल को गहराई तक छू लेती है। मुझे खासतौर पर वो हिस्सा बहुत अच्छा लगा जहाँ तुमने टूटे मन को ममता और गंगा के जल से ताकत देने की बात की।
जवाब देंहटाएं