आगाज

ऊँची    डगर   है ,  लंबा  सफर   है ।

जाना   नहीं   है ?   जाना  कहाँ  है ?

रोके   है   जमाना !  टोके   है   जमाना !

कोसे   है   जमाना !   ये   तो   है  ,  जमाने  का  अपना  

भरमाना  !

परवाह   नहीं  ,  इस  उड़ते   परिंदे  को ,

बस  उड़ते   है   जाना !

मिलेगी  मंजिल   एक   दिन  ..

ये   मन   ने   है   जाना  ।

ख्वाहिशों   की   चादर , 

बुनने   को   डाले   पैबन्द   जो ,

रेशम  ?   नहीं ,  चुना   है   हकीकत  ,

हाँ  ,  हकीकत   को ।

मुश्किलें   बैरी  ? 

न ,  भली   है !  अनजानी   है ।  

फिर  ,  भी    चल   तो   पड़ी   है , 

अनजानी   राहों   में   संग  करने   कदमों - ताल ,

निकल   तो   पड़ी   है ।

कहो , कैसे   होगा  ?   दिग्भ्रांत

पथ   भी  बना  जब  साथ   ,  

करने   को   सफर   का   है  आगाज  ....


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