चींटी - सुमित्रानंदन पंत की कविता

चींटी   को   देखा ? 

वह  सरल ,  विरल ,  काली  रेखा

तम  के  तागे  सी  जो  हिल - डुल

चलती  लघुपद  पल - पल  मिल - जुल

वह   है   पिपीलिका  पाँति !

देखो  ना ,  किस  भाँति

काम  करती  वह  सतत !

कन -  कन   करके  चुनती  अविरत !

गाय  चराती ,  धूप  खिलाती ,

बच्चों  की   निगरानी   करती ,

लड़ती  ,  अरि   से   तनिक   नहीं   डरती ,

दल  के  दल  सेना   सँवारती ,

घर -  आँगन ,  जनपथ  बहुराती !

चींटी   है   प्राणी  सामाजिक  ,

वह   श्रमजीवी  ,  वह  सुनागरिक !

देखा   चींटी   को ?  उसके   जी   को  ?

भूरे   बालों   की   सी   कतरन ,

छिपा  नहीं   उसका  छोटापन ,

वह   समस्त   पृथ्वी  पर   निर्भय 

विचरण   करती ,  श्रम   में   तन्मय  ,

वह  जीवन  की  चिनगी   अक्षय  !

वह  भी  क्या   देही  है ,  तिल -  सी ?

प्राणों   की  रिलमिल -  झिलमिल  सी !

दिन  भर   में   वह   मीलों   चलती ,

अथक ,  कार्य   से   कभी   न   टलती ।।

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